Two Liners by Prerna Sachdeva
समझता सिर्फ समझदार है,
नासमझ को समझा पाए, तो आप मे बात है॥
~Prerna
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है जिसके पास, दावा है उसका पक्का
कि सबसे अच्छी सिर्फ उसके पास।
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कौन ?
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“माँ “
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मत कर इतनी तारीफ मेरी- ऐ दोस्त ,
अच्छा बनने में मेरा अपना स्वार्थ है।
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अच्छा करने पर मुझको काफ़ी अच्छा लगता है॥
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I ignored the itching in the first place.
A year later, I complained to God for the wound.
~Prerna
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क्यूँ इतराऊ अपनी तारीफ सुनने पर?
~ Prerna
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गर वो माँगता खुद, तो मैं हंसता जरूर।
पर जो ये हाल है उसका, ख़ुदा से उसने खुद माँगा नहीं॥
गर = अगर
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वो सादगी,वो सच्चाई
कहीं ओर नहीं।
जैसी मैंने आईने में समाई परछाई में देखी है॥
~प्रेरणा
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अगर वो लिखा था,तो फिर इलज़ाम कैसा?
गर नहीं..
तो जुबां पर ज़िक्र,किस्मत का क्यो ?
~प्रेरणा
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हम निहायत कच्चे खिलाड़ी निकले रफ़ीक।
जब तक वो खेल समझ में आया,बाज़ी हार चुके थे॥
रफ़ीक = दोस्त
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कुछ इस तरह उसने अपनी जिंदगी में खुशियों का आगमन कर दिया,
जो कुछ था उसके पास,उससे वंचित रहने का पलभर खयाल कर लिया ॥
~प्रेरणा
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सोच समझ कर वो तीन शब्द जुबां पर लाना, ओ आज के मुहीब।
वो पुराने दौर की लड़की है, कहीं सच ना मान जाये॥
मुहीब = Lover
प्रेरणा
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पैसा था वही, रकम भी वही
फिर भी ना जाने कुछ दर्द सा हुआ ।
अपना था इस बार, पिता का नहीं
इसलिए दिल से खर्च ना हुआ ॥
~प्रेरणा
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बदलना चाहता था मैं खुद को,
पर बिना बदले खुद को ।
बदला माहौल जबसे अपना,
बदला पाया मैंने खुद को ॥
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A Message To क़ारी/Reader
बस इतना सा एहसान तू कर दे क़ारी।
जितने जज़्बात के साथ मैं लिखता हूँ बात,उतने जज़्बे के साथ तू मुताला करना ॥
~प्रेरणा
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तू वो यार नहीं जिसकी हमें तलाश है।
तकल्लुफ करना, हमें अरसों से ना मंजूर है॥
~प्रेरणा
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रूह कुछ कहती है तुझ से,
एक दफ़ा सुन तो ले॥
~प्रेरणा
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~Prerna
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दुख में नीवा हो दिये या जब आपत्ति होए,
सुख में नीवा तू रहे, तो दुख किस बात का होए ।।
नीवा =Humble
~प्रेरणा
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उस तसववुर में छुपी जो तस्वीर है,
वो तस्वीर ही तुम्हारी तकदीर है।।
तसववुर= Imagination
~प्रेरणा
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उस बात में कैसी बात,
जिस बात में हो बात ही बात ।
बात में बात तो तब हो,
जब बेबात हो जाए सारी बात ॥
बेबात = बिन बात
~प्रेरणा
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Sometimes I think and behave mature.
Sometimes I think and still go immature.
Sometimes I think, why did not I think?
Sometimes I think and find a reason to unthink.
~Prerna
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मत जान अल्फ़ाज़ को इतना गैर अहम,
ये तेरा घर बना भी सकता है और कर फ़ना भी सकता है।।
गैर अहम = Insignificant
~प्रेरणा
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वो जीत को जीत कर अपने आप को बाज़ीगर मान बैठे,
भूल गए वो नादान, उस बाज़ी में हारे तो हम थे।।
~प्रेरणा
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हम थोड़े अलग है जनाब।
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छोटे शहरों के राज-पाट पसंद है,
बड़े शहरों के शान-ओ-शौकत से ॥
~प्रेरणा
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वो उसकी खूबसूरती और अदब अंदाज़ पर बे-यक़ीनी
हुए।
फरमाए वो महाशय – “हर चमकती चीज़ सोना नहीं ”
हम सहमत भी हुए और नहीं भी।
कयोंकि इस बात से इनकार तो हमें भी नहीं
कि हर चमकती चीज़ सोना नहीं।
हीरा भी तो हो सकता है “आफरीन”॥
आफरीन= Beautiful
~प्रेरणा
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किसी ने कहा- कुछ “माँ” पर लिखो।
तो उठा लिया कागज़ और हाथ में कलम।
यकीन मानो समझ नहीं आ रहा,
कहां से शुरू करूं और कहां पे खत्म॥
~प्रेरणा
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गलतफहमी में ही सही,
दिन तो अच्छे गुज़रे ।
~प्रेरणा
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मोहब्बत में तजरबा ना हुआ कभी।
पर लिखने की कला पे अपनी,
यकीन है इतना-
जब कलम रखेंगे “मोहब्बत” पे अपनी,
मारूफ आशिक भी एतबार ना करेगा
कि हमने मोहब्बत,की ही नहीं कभी ॥
तजरबा= Experience
मारूफ= Famous
~प्रेरणा
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उनमें और हम में बस फर्क इतना है,
हमें खुद से मोहब्बत है, ‘मतलब’ नही ।
~प्रेरणा
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All of them are touching. My all-time pick would definitely be that MAA one!!
Thank You! 🙂